Saturday 30 May 2020

Moksha Patam - Ancient Indian Game !! मोक्ष पटम: प्राचीन भारत का अद्भुत खेल ||




मोक्ष पटम: प्राचीन भारत का वह अद्भुत खेल जिसमे मनुष्य को कर्म का फल खेल के माध्यम से समझाया जाता था || 

१३वी शताब्दी में महान संत और कवि श्री ज्ञान देव ने इस अद्भुत खेल की रचना करी थी ताकि बच्चे और नौजवान कर्म का महत्व समझ सके | परन्तु विदेशी इस खेल को भारत से बाहर ले गए और सांप सीढी नाम रख दिया और क्युकी अंग्रेजो ने बहुत वर्षो तक राज किया तो भारतीय अपने ही मोक्षपटम को भूल गए और विदेशी नाम से पुकारने लगे | उन्होंने इसमें कुछ बद्लाव भी किये जैसे उसमे १०० तक गिनती डाल दी जबकि मोक्षपटम में सिर्फ ७२ तक ही गिनती थी क्युकी भारतीय शास्त्रों के हिसाब से ९ अंक सबसे महत्वपूर्ण होता है | खेल तो वह चुरा ले गए पर इसका मकसद समझ नहीं पाए और इस वजह उन्होंने अपने खेल में सिर्फ अंको पर ज़ोर डाला जबकि मोक्षपटम में हर एक संख्या या खानो (जगह) में जीवन से जुडी हुई अच्छाई, बुराई, पंचतत्व आदि का विवरण दिया हुआ था जोकि आप चित्र में पढ़ सकते है और अगर समझ न आये तो ज़रूर कमेंट करके बताये हम आपको उसका विवरण देंगे || 

अब गौर करते है कुछ विशेष खानो पर जिनमे सांप और सीढ़ी बनी हुई है, इस खेल में सर्प बुरे कर्म है और सीढ़ी अच्छे कर्म का फल, नीचे से उलटे हाथ का पहला क्रम १ है और और सबसे ऊपर उलटे हाथ पर कोने वाला ७२ है || 

|| दुबारा बात रहे है इस खेल में सर्प बुरे कर्म का फल है और सीढ़ी अच्छे कर्म का फल || 

10 वे स्थान पर सीढी यानी तपस्या और यह ऊपर लेकर जाएगी 23 वे स्थान पर जो स्वर्ग है, जिसका मतलब है तप करने से ही स्वर्ग संभव है | 

12 स्थान पर सर्प यानी ईर्ष्या और आप नीचे आएंगे 8 वे स्थान पर यानी संसार और सांसारिक मोह माया में अटके रहेंगे और प्रभु को प्राप्त नहीं होंगे | 

16 वे स्थान पर सर्प यानी द्वेष और आप नीचे 4 वे स्थान पर आ जायेगे यानी लोभी, लोभी व्यक्ति से ही द्वेष होता और आप लोभी का जीवन जीयेंगे जिसका मतलब है लोभी व्यक्ति के कोई सच्चा सम्बन्धी नहीं होता और ज़रूरत पड़ने पर कोई लोभी की मदद नहीं करता | 

17 वे स्थान पर सीढ़ी यानी दया और यह आपको सीधा 69 वे स्थान पर ले जायेगी जो "ब्रह्म लोक" होता है जो स्वयं श्री ब्रह्मा का निवास होता है और वहा वह लोग निवास करते है जो सत्य का ज्ञान प्राप्त कर चुके होते है और जो संसार की मोह माया को समझ सकते है क्युकी श्री ब्रह्मा ने ही शृष्टि का निर्माण किया है | इसका तात्पर्य यह है की दया करने से करुणा आती है और करुणा से प्रेम जागता है और प्रेम से प्रभु को पाना आसान है और जो जीव दया करता है वह सीधा बहुत ऊपर जा सकता है | 

20 वे स्थान पर सीढ़ी यानी दान और यह सीधा आपको 32 वे स्थान पर ले जाती है जो "महर लोक" होता है जहा संत और ऋषि निवास करते है | इसका अर्थ है की दान देने से बुरे कर्म कटते है और मनुष्य संत योनि को प्राप्त होता है | 

22 वे स्थान पर सीढ़ी यानी धर्म और यह सीधा आपको 60 वे स्थान पर ले जाएगी जो है सदबुद्धि जिसका मतलब है की धर्म करने से सदबुद्धि आती है और आप जीवन में ऊपर बढ़ते है | 

24 वे स्थान पर सर्प है यानी कुसंग और यह आपको 7 वे स्थान पर गिरा देता है जो मद है जिसका मतलब की कुसंगति में रहने से बुरी आदते लगती है और व्यक्ति कुकर्मो से कारण सफलता को प्राप्त नहीं कर पाता | 

27 वे स्थान पर सीढ़ी यानी परमधर्म और यह आपको 41 वे स्थान पर ले जाएगी जो "जन लोक" है जहा श्री ब्रह्मा के पुत्र और पुत्रिया निवास करती है| परमधर्म का अर्थ है सांसारिक जीवन भोगते हुए धर्म और कर्मा को श्रेष्ठ रखना | जो व्यक्ति परमधर्म का पालन करता है उसे जनलोक में यानी श्री ब्रह्मा के परिवार में स्थान मिलता है | 

28 वे स्थान पर सीढ़ी यानी सतधर्म और यह आपको 59 वे स्थान पर ले जाती है जो "सत्य लोक" है और श्री ब्रह्मा का निवास स्थान है | सत्धर्म का मतलब मन, कर्म, वाणी में शुद्धि, गौ और मानव सेवा जिसके लिए सर्वोपरि है वह सत्यलोक को प्राप्त होता है | 

29 वे स्थान पर सर्प है यानी अधर्म और यह आपको 6 वे स्थान पर उतार देगा जो मोह है | इसका तात्पर्य है की अधर्म करने से व्यक्ति मोह की तरफ चला जाता है और ऐसा व्यक्ति दुःख पाता है | 

37 वे स्थान पर सीढ़ी है यानी ज्ञान और यह आपको 66 वे स्थान पर ले जाएगी जो है "आनंद लोक" | ज्ञान अर्जित होने से मनुष्य अपना जीवन धरती पर ही स्वर्ग जैसा बना सकता है और जहा वह रहता है वही आनंद होता है इसलिए इसे आनंदलोक कहा गया है | 

44 वे स्थान पर सर्प है यानी अविधा और यह आपको 9 वे स्थान पर गिरा देगा जो है काम | इसका अर्थ है की आप दुसरो को कष्ट देंगे तो स्वयं भी उसका भुगतान करना होगा और आपके सब कर्म निष्फल होंगे | 

45 वे स्थान पर सीढ़ी है यानी सुविधा और यह आपको 67 वे स्थान पर ले जाएगी जो है "शिवलोक" यानी अनंत शांति और एकाग्रता अर्थात आप दुसरो को सुख देंगे तो आपको असीम मानसिक शांति और संतुष्टि मिलेगी परम श्री शिव की कृपा से | 

46 वे स्थान पर सीढ़ी है यानि विवेक और यह आपको 62 वे स्थान पर ऊपर पंहुचा देगी मतलब सुख तक | अर्थात विवेक से काम लेने वाला व्यक्ति सुख भोगता है क्युकी वह दुसरो की बातो में न आकर स्वयं समझ कर निर्णय करता है और अपनी हानि होने से बचाता है | 

52 वे स्थान पर सर्प है यानी हिंसा और यह आपको सीधा नीचे 35 वे स्थान पर गिराता है जो नर्क है अर्थात किसी भी जीव या मनुष्य के साथ हिंसा या उसका वध करना महा पाप है और इसका फल सिर्फ नरक लोक है| 

54 वे स्थान पर सीढ़ी यानी भक्ति है जो सीधा आपको 68 वे स्थान यानी "वैंकुंठ धाम" में ले जाती है वैकुण्ठ का शाब्दिक अर्थ है- जहां कुंठा न हो। कुंठा यानी निष्क्रियता, अकर्मण्यता, निराशा, हताशा, आलस्य और दरिद्रता। इसका मतलब यह हुआ कि वैकुण्ठ धाम ऐसा स्थान है जहां कर्महीनता नहीं है, निष्क्रियता नहीं है। कहते हैं कि मरने के बाद पुण्य कर्म करने वाले लोग वैकुंठ जाते हैं।

55 वे स्थान पर सर्प है यानी अहंकार जो सीधा नीचे 2 वे स्थान पर गिरा देता है अर्थात तरक्की से अहंकार आता है और अगर उसे ख़त्म न किया जाए तो वह मनुष्य को माया में उलझा देता है जहा मायालोक में उसका दमन होता है | 

61 वे स्थान पर सर्प है यानी दुर्गुण जो आपको बहुत नीचे 13 वे स्थान पर गिरा देता है जो अंतरिक्ष है अर्थात जिस तरह अंतरिक्ष का ना आदि न अंत है उसी तरह दुर्गुण वाला व्यक्ति ऐसे ही अनंत जाल में उलझ कर रह जाता है और परम पद को प्राप्त नहीं होता | 


63 वे स्थान पर सर्प है यानी तामस मतलब तमस यानी अज्ञान जो आपको नीचे 3 वे स्थान पर गिरा देता है जो क्रोध है यानी की अज्ञानी व्यक्ति किसी बात को सही रूप से नहीं समझता और सब कार्य उलटे करता है जिस वजह से उसका विनाश होता है | 

72 वे और आखरी और सबसे ऊपर स्थान पर सर्प होता है यानी तमोगुण जो आपको नीचे 51 वे स्थान पर यानी पृथ्वी पर उतार देगी ! सबसे आखरी स्थान में सर्प रखने का यही मतलब है की व्यक्ति जब ऊचाई को प्राप्त होता है तो अहंकार के वश में आकर वह तमोगुणी हो जाता है जिसमे तामसिक भोजन जैसे अत्यधिक मिर्ची, पशु भक्षण, दूसरा बुरा आचरण करना जैसे साथ वालो से बुरा भला कहना, मद में रहना आदि और ऐसा व्यक्ति सुख के चरम पर पहुंच तो जाता है पर उसके तमोगुण उसे पृथ्वी लोग में धकेल देते है और वह पृथ्वीलोक की योनियों में भटकता रहता है और प्रभु को प्राप्त नहीं कर पाता | 

तो यह था मोक्षपटम का महत्व जिसमे खेल खेल में व्यक्ति को जीवन का सार बताया गया है |अब आप ही बताये जिस देश में बचपन से ही बच्चो को ऐसे धर्म कर्मा और संस्कार का ज्ञान मिलता होगा वह कितने ज्ञानी रहे होंगे !! पर विदेशी संस्कृति ने नाम ही नहीं हमारे संस्कार ही बदल दिए है और हम अपनी ही संस्कृति को भूल गए है !!

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Vijay Stambh - Chittorgarh - Rajasthan !! विजय स्तम्भ - चित्तौडग़ढ़ - राजस्थान||



|| विजय स्तम्भ - चित्तौडग़ढ़ - राजस्थान, साहस, शौर्य, बलिदान और विजय की अमर गाथा ||
इसे मेवाड़ नरेश राणा कुम्भा ने महमूद खिलजी के नेतृत्व वाली मालवा और गुजरात की सेनाओं पर विजय के स्मारक के रूप में सन् 1440-1448 के मध्य बनवाया था। यह राजस्थान पुलिस ओर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का प्रतीक चिन्ह है। इसे विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता हैं।
|| Vijay Stambh - Chittorgarh - Rajasthan, A Tale of Bravery, Victory & extreme Sacrifice !!
It was built by Mewar King Rana Kumbha between 1440-1448 as a memorial to the victory over the armies of Malwa and Gujarat led by Mahmud Khilji. It is a symbol of the Rajasthan Police and Board of Secondary Education. It is also called Vishnu Stambha.

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Patrika Gate - Jawahar Circle - Jaipur !! पत्रिका गेट -जवाहर सर्किल - जयपुर ||




|| पत्रिका गेट -जवाहर सर्किल - जयपुर ||
घूमने वालो के लिए पार्क और चटोरो की चौपाटी |
|| Patrika Gate - Jawahar Circle - Jaipur ||

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Shri Vittala Temple- Hampi - Karnataka ! श्री विट्टल मंदिर - हम्पी - कर्णाटक |



|| श्री विट्टल मंदिर - हम्पी - कर्णाटक ||
|| पत्थरो का रथ पर इतना जीवंत लग रहा है जैसे अभी चल ही देगा , पत्थरो में जान डालने की कला सिर्फ भारतीय वास्तुकारों में थी ||
|| Shri Vittala Temple- Hampi - Karnataka ||
|| The Stone Chariot looks lively and it proves that Stone Architecture was best known to the Indian Artisans !!

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Gol Gumbaj - World's Second Biggest Dome || गोल गुम्बज: दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा गुम्बज||




|| दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गुम्बज ||
|| गोल गुम्बज - बीजापुर - कर्नाटक ||
गोल गुम्बज: दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा गुम्बज वाला एक राजसी मकबरा जिसका व्यास 124 फीट है । गोल गुम्बज एक बेहतरीन रूप से बनाया हुआ मकबरा है जो कि बीगोन युग के वास्तुशिल्प प्रतिभा को प्रदर्शित करता है।यह उत्तरी कर्नाटक के एक छोटे से शहर बीजापुर उर्फ ​​विजयपुरा में स्थित है |
|| World's Second Biggest Dome ||
|| Gol Gumbaj - Bijapur - Karnataka ||
Gol Gumbaz: A Majestic Mausoleum with the Second-Largest Dome in the World.Its Diameter is 124 Feet. Gol Gumbaz is an imposing mausoleum that displays the architectural brilliance of the bygone eras. Located in Bijapur aka Vijayapura, a small town in Northern Karnataka.

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Ancient Indian Weapons !! प्राचीन भारत के हथियार ||



Hello Friends,
Today's Video is based on the Ancient Weapons that were used in Wars or Hunt. These given weapons actually originated in Indian Subcontinent and are very lethal. Some of them are no more used in today's World but some are still in use. We have handpicked the list of some of the great old weapons and we hope that you will like the video.
आज का वीडियो उन प्राचीन हथियारों पर आधारित है जिनका उपयोग युद्धों या शिकार में किया गया था। ये दिए गए हथियार वास्तव में भारतीय उपमहाद्वीप में अलंकृत हैं और बहुत ही घातक हैं। उनमें से कुछ आज की दुनिया में उपयोग नहीं किए जाते हैं, लेकिन कुछ अभी भी उपयोग में हैं। हमने कुछ पुराने पुराने हथियारों की सूची सौंप दी है और हमें उम्मीद है कि आपको वीडियो पसंद आएगा।
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Tibetian Flags In Ladakh !!




|| लद्दाख में मंत्रो वाले झंडो का महत्व ||
इन झंडो को तिब्बती झंडो के नाम से जाना जाता है और यह प्राय लद्दाख और सिक्किम क्षेत्र जहा बुद्ध अनुयायी होते है वहा देखने को मिलते है | इन झंडो के ऊपर मंत्र लिखा हुआ होता है " ॐ मणि पदमे हुम् " जिसका मतलब है "ओम दिव्य ध्वनि है, कि चेतना के स्तर तक उठना है, मणी का मतलब है गहना, पद्मे का मतलब कमल के फूल है, और हम जैसे तिब्बती प्रतिज्ञान 'मतलब "ऐसा हो"|
यह झंडे लोग मंदिरो में, घरो में, पुलों पर, पेड़ो पर और ऐसी हर जगह लगाते है जहा से इस ऊर्जा का प्रसारण हो सके और इन्ह्ने इसलिए भी लगाया जाता है ताकि बुरी शक्तिया जिन्हे बुरी हवा कहा जाता है वह इन झंडो के हवा में लहराने से नष्ट हो जाते है और नकारात्मकता दूर होती है | इनके लगाने से वातावरण पवित्र होता है और मानसिक शांति बानी रहती है |
|| Importance of Tibetian Flags in Ladakh & Sikkim ||
These flags are known as Tibetan flags and are often seen in Ladakh and Sikkim areas where Buddha is worshipped mostly. Above these flags have Mantra's written on them which is "Om Mani Padme Hum" which means "Om is the divine sound, that is to rise to the level of consciousness, Mani means jewel, Padme means lotus flower, and Tibetans like us Affirmation means "so".
These flags are placed in temples, homes, bridges, trees and everywhere else so that this positive energy can be transmitted and they are also installed so that evil powers, which are called bad winds, are in the air are destroyed by these flags. Evil powers are destroyed and negativity is removed. By applying them, the atmosphere is pure and mental peace is maintained.

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Indian Lethal Weapin - Bagh Nakh !! बाघ नख - हथियार जिससे शिवाजी महाराज ने अफ़ज़ल खान को मारा था |



|| बाघ नख - हथियार जिससे शिवाजी महाराज ने अफ़ज़ल खान को मारा था||
इस घातक हथियार का इस्तेमाल जहर के साथ हत्या के लिए भी किया गया था। इसे हथेलियों के नीचे आसानी से छुपाया जा सकता था।
इस गुण के कारण, खतरनाक स्थानों पर जाने पर महिलाओं को इसे ले जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।|
This weapon is known as Tigers Claw and was used by Shivaji Maharaj to kill Afzal Khan ! This is a lethal weapon that was developed in India !!

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Chaturbhuj Temple - Orcha - Madhya Pradesh - India !! चतुर्भुज मंदिर - ओरछा - मध्य प्रदेश||



|| चतुर्भुज मंदिर - ओरछा - मध्य प्रदेश ||
|| बना था श्री राम के लिए और पूजा होने लगी श्री विष्णु की, अद्भुत कहानी ||
इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा होती है।
लेकिन इसके पीछे एक बहुत ही मजेदार किस्सा है। इस मंदिर को 1558 ई. से 1573 ई. के बीच राजा मधुकर शाह द्वारा बनवाया गया था। प्राप्त जानकारी के अनुसार ओरछा के तत्कालीन महाराज मधुकर शाह बांके बिहारी यानि भगवान कृष्ण के उपासक थे, जबकि महारानी भगवान राम की उपासना करते थे। इस बात को लेकर दोनों के बीच काफी विवाद होता था।
एक दिन महारानी ने यह निर्णय किया कि वे अपने प्रदेश में भगवान राम की स्थापना करवाएंगी। इसी कारण वे राजा को बिना बताए अयोध्या निकल गईं, जहां घोर तपस्या करने के बाद भगवान राम उनके साथ बाल अवस्था में चलने को राजी हो गए। ओरछा छोड़ने से पहले महारानी ने अपने सेवकों को चतुभरुज मंदिर का निर्माण करवाने का आदेश दिया था। उधर जब राजा को रानी के चले जाने का पता चला, तो उन्होंने उनकी अनुपस्थिति में चतुर्भुज मंदिर के निर्माण कार्य को पूरा करवाया।
कुछ साल बाद रानी भगवान राम को लेकर ओरछा पहुंची और अपने महल में रखा। जब चतुर्भुज मंदिर में उनकी स्थापना की बात हुई, तो भगवान राम ने महल छोड़ने से इंकार कर दिया। इसके बाद उनकी स्थापना वहीं हुई और रानी का महल राम राज मंदिर बन गया। अब चूंकि चतुर्भुज मंदिर बनकर तैयार हो गया था, तो वहां राजा और रानी ने मिलकर भगवान विष्णु की स्थापना करवाई। इसके बाद से वहां भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

Thursday 28 May 2020

Temple Architecture Layout in Ancient Times !! प्राचीन भारत में मंदिर बनाने का नक्शा ||



|| प्राचीन भारत में मंदिर बनाने का नक्शा ||
|| कुण्डलिनी जाग्रत करने के स्थान थे प्राचीन मंदिर ||
प्राचीन भारत में मंदिर बनाने से पहले जगह और दिशा का विशेष महत्व होता था | मंदिरो का निर्माण अलग अलग शैलियों के हिसाब से हुआ करता था पर अधिकतर मंदिर ऐसी पद्धति से बनते थे जिसमे हर एक कुण्डलिनी चक्र के हिसाब से गर्भगृह, मंडप, प्रस्थान, परिक्रमा आदि का निर्माण होता था और जिस चक्र के हिसाब से उस जगह का निर्माण होता था वहा व्यक्ति को चलकर या बैठकर उस चक्र को जागृत करने में सहयोग मिलता था | यही कारण होता है की प्राचीन मंदिरो में आज भी जाने पर व्यक्ति मानसिक रूप से शांति और संतुष्टि का अनुभव होता है | एक चित्र साझा कर रहे है जिसमे आपको बताया गया है की मंदिर निर्माण का विचार कैसा होता था |

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Kailasanathar Temple - Kanchipuram - Tamilnadu !! कैलासनाथर मंदिर - कांचीपुरम - तमिलनाडु |



|| कैलासनाथर मंदिर - कांचीपुरम - तमिलनाडु ||
कांची कैलासनाथर मंदिर कांचीपुरम की सबसे पुरानी संरचना है। भारत के तमिलनाडु में स्थित, यह तमिल स्थापत्य शैली में एक हिंदू मंदिर है। यह भगवान शिव को समर्पित है, और अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। मंदिर पल्लव राजवंश के एक राजसिंह शासक द्वारा 685-705 ईस्वी से बनाया गया था।

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Jal Mahal - Deeg Fort - Bharatpur - Rajasthan !! जलमहल - डीग किला - भरतपुर ||



|| जलमहल - डीग किला - भरतपुर ||
राजस्थान में भरतपुर जिले के अंदर डीग में स्थित यह किला बहुत ही सुन्दर है और इसकी बनावट बहुत ही शानदार है ! गर्मियों के लिए बनाया हुआ जल महल यहाँ का मुख्य आकर्षण है पर दुःख की बात है की सरकार द्वारा इसका ध्यान नहीं रखा जा रहा जिस वजह से इस स्वर्णिम इतिहास वाला किला दिन पर दिन जर्जर होता जा रहा है | पर फिर भी यह एक देखने लायक अद्भुत और सुन्दर स्थल है और अगर आप भरतपुर जाए या आगरा जाए तो डीग का किला देखना न भूले ||

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Wednesday 27 May 2020

Sun Temple - Modhera - Gujarat !! मोढेरा - गुजरात का सूर्य मंदिर समूह ||







|| मोढेरा - गुजरात का सूर्य मंदिर समूह ||
|| भारतीय वास्तु कला का एक स्वर्णिम उदहारण ||
मोढेरा का सूर्य मंदिर एक हिंदू मंदिर है, जो भारत के गुजरात के मेहसाणा जिले के मोढेरा गाँव में स्थित सौर देवता सूर्य को समर्पित है। यह पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है। इसका निर्माण 1026-27 ईस्वी के बाद चौलुक्य वंश के भीम I के शासनकाल के दौरान किया गया था।
इस मन्दिर परिसर के मुख्य तीन भाग हैं- गूढ़मण्डप (मुख्य मन्दिर), सभामण्डप तथा कुण्ड (जलाशय)। इसके मण्डपों के बाहरी भाग तथा स्तम्भों पर अत्यन्त सूक्ष्म नक्काशी की गयी है। कुण्ड में सबसे नीचे तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं तथा कुछ छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं।

Ramnath Swamy Temple - Rameshwaram - India !! रामनाथस्वामी मंदिर - रामेश्वरम ||


|| अद्भुत और अद्वितीय रामनाथस्वामी मंदिर - रामेश्वरम ||
रामेश्वरम का श्री रामनाथस्वामी मंदिर अपने आपने एक अजूबा है ! पर जो इसे बहुत अद्भुत बनाते है वह है बहुत बड़े गलियारे ! इस मंदिर के बाहरी गलियारे करीब 6.9 मीटर लम्बे है और चौड़ाई 400 फ़ीट पूरब और पश्चिम दिशा की तरफ है और कुछ 640 फ़ीट उत्तर और दक्षिण में है जिस वजह से रामनाथस्वामी मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे बड़ा भी माना जाता है |
पर इसकी सुंदरता में चार चांद लगते है इन गलियारों के 1212 खम्बे जो गलियारे के दोनों तरफ लगे हुए है और हर एक ही लम्बाई 30 फ़ीट है और इनपर चित्रकला और नक्काशी बहुत ही मंत्रमुग्ध करने वाली है और यहाँ आने वाले को अचंभित कर देती है ||

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Gopachal Caves - Gwalior Fort - Madhya Pradesh - India !! ग्वालियर के गोपाचल पर्वत||


|| आश्चर्यजनक और अद्भुत है ग्वालियर के गोपाचल पर्वत - भारतीय कलाकारी का बेजोड़ उदहारण ||
|| एक ही पर्वत में से काट कर बनाई गयी भगवान् की मुर्तिया ||
गोपाल जैन स्मारक, जिन्हें गोपाचल पर्वत जैन स्मारक भी कहा जाता है, 7 वीं और 15 वीं शताब्दी के बीच जैन नक्काशी का एक समूह है। वे ग्वालियर किले, मध्य प्रदेश की दीवारों के आसपास स्थित हैं। वे तीर्थंकरों को बैठे हुए पद्मासन मुद्रा में और साथ ही कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े होकर जैन प्रतिमा के विशिष्ट नग्न रूप में चित्रित करते हैं ||
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Nahargarh Fort - The Most Happening Place of Jaipur !! नाहरगढ़ किला - जयपुर ||




|| नाहरगढ़ किला - जयपुर ||
कही भी चले जाओ पर जयपुर के नाहरगढ़ जैसा सुकून किसी जगह नहीं है ||
ना जाने कितने दोस्तों की यादे जुडी हुई है इस जगह से काश वह वक़्त वापस आ जाये | कल तक जो सबसे अच्छे दोस्त थे आज वो अजनबी है | आज पैसा है पर समय नहीं वो राते नहीं वो बाते नहीं |
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Tuesday 26 May 2020

Tunganath Mahadev - Rudraprayag, ‎Uttarakhand !! Highest Shiva temples in the world









Tungnath is one of the highest Shiva temples in the world and is the highest of the five Panch Kedar temples located in the mountain range of Tunganath in...
तुंगनाथ दुनिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिरों में से एक है और तुंगनाथ की पर्वत श्रृंखला में से एक है और तुंगनाथ की पर्वत श्रृंखला में स्थित पांच पंच केदार मंदिरों में से सबसे ऊंचा मंदिर है |
‎Rudraprayag, ‎Uttarakhand
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Chand Baori - Abheneri Step Well's - Rajasthan !! चांद बावड़ी - आभानेरी |






|| चांद बावड़ी - आभानेरी ||
|| विश्व की सबसे बड़ी सीढ़ियों वाली बावड़ी ||
|| अजूबा है यह बावड़ी ||
जयपुर, राजस्थान के समीप आभानेरी गाँव में स्थित चाँद बावड़ी भारत की सबसे सुन्दर बावड़ी है। मैं तो इसे सर्वाधिक चित्रीकरण योग्य बावड़ी भी मानती हूँ। यह १३ तल गहरी बावड़ी है। बावड़ी के भीतर, जल सतह तक पहुँचती सीड़ियों की सममितीय त्रिकोणीय संरचना देख आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। राजस्थान एक सूखा रेगिस्तानी प्रदेश होने के कारण यहाँ बावड़ियों का निर्माण सामान्य है। उत्क्रुष्ट जल प्रबंधन प्रणाली होने के साथ साथ ये बावड़ियाँ ग्रीष्म ऋतू में वातावरण में शीतलता भी प्रदान करती हैं। शोचनीय तथ्य यह है कि एक जल प्रबंधन प्रणाली को वास्तुशिल्पीय दृष्टी से इतना मनमोहक निर्मित करने के पीछे क्या हेतु था? कहीं ऐसा तो नहीं कि ९वी शताब्दी की सर्व सार्वजनिक संरचनाएं इतनी ही मनोहारी हुआ करती थीं और हमारी धरोहर स्वरुप कुछ ही शेष है? यदि यह सत्य है तो उस युग के भारत को विश्व का चमकता हीरा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जयपुर आभानेरी की चाँद बावड़ी आभानेरी चाँद बावड़ी का इतिहास
चाँद बावड़ी राजस्थान की तथा कदाचित सम्पूर्ण भारत की प्राचीनतम बावड़ी है जो अब भी सजीव है। भारत की इस सर्वाधिक गहरी बावड़ी का निर्माण निकुम्भ वंश के राजा चंदा या चंद्रा ने ८वी से ९वी शताब्दी में करवाया था। १२०० से १३०० वर्ष प्राचीन यह संरचना ताजमहल, खजुराहो के मंदिर तथा चोल मंदिरों से भी प्राचीन हैं किन्तु अजंता एवं एलोरा गुफाओं के शिल्पों से अपेक्षाकृत नवीन हैं।
आभा नगरी अर्थात् चमकने वाला नगर, जयपुर-आगरा मार्ग पर स्थित एक छोटा क़स्बा है जिसे राजा चाँद ने बसाया था। रोमांचक बावड़ियों एवं माता मंदिर हेतु प्रसिद्ध इस कस्बे का नाम कालान्तर में आभानेरी में परिवर्तित हो गया।
आईये ९वीं शताब्दी में निर्मित इस बावड़ी अर्थात् वाव या पुष्कर्णी के २१वी. शताब्दी के रूप से आपका परिचय कराती हूँ-
चाँद बावड़ी के दर्शन
इस आकर्षक बावड़ी के कई चित्र देखने के पश्चात मैं पहले ही इस पर मंत्रमुग्ध थी। इस अद्भुत बावड़ी के प्रत्यक्ष दर्शन करने के विचार से मन रोमांचित हो उठा था। एक ऊंचे मंडप से होकर इस बावड़ी के परिसर पर पहुँची। वहां कुछ स्त्रियाँ एक शिवलिंग की पूजा कर रही थीं। कुछ पग आगे चल कर जो दृश्य देखा मेरे रोंगटे खड़े हो गए। चित्रों में जिस आकर्षक बावड़ी को देखा था, प्रत्यक्ष में यह बावड़ी उससे कहीं अधिक भव्य एवं प्रभावशाली प्रतीत हुई। कुछ क्षण मंत्रमुग्ध होकर मैं उस बावड़ी को ताकती रही। सचेत होने पर बावड़ी का सूक्ष्मता से निरिक्षण आरम्भ किया।
शिल्पकला का जीवंत नमूना आभानेरी की चाँद बावडी
कला, संस्कृति, इतिहास एवं पर्यटन क्षेत्रों की बात की जाये, तो भारत भूमि का मुकाबला तो दूर, कोई आस-पास भी खडा हुआ नजर नहीं आता। 'अतिथि देवो भवः' सभ्यता वाले हमारे देश में कदम-कदम पर ऐतिहासिक स्थल, विजय स्तम्भ, महल, मीनारें, बावडियाँ, हर स्थल से जुडी पौराणिक गाथा, हर एक स्थान का धार्मिक महत्त्व आदि देखने या सुनने में आता है। इन स्थानों पर लोगों को धर्म से जोडने के लिए अनेकों राजाओं ने मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारे एवं अन्य धार्मिक स्थान बनाये हैं। इन धार्मिक-ऐतिहासिक स्थानों की उपस्थिति को अपने मन में बिठाकर लोग एक-दूसरे का सम्मान करते हैं एवं अपने बच्चों को भी इसी तरह की शिक्षा देते हैं।
आभानेरी
जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-11) पर स्थित दौसा जिले का ह्रदय कहे जाने वाले सिकंदरा कस्बे से उत्तर की ओर कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, आभानेरी गाँव। पुरातत्व विभाग को प्राप्त अवशेषों से ज्ञात जानकारी के अनुसार आभानेरी गाँव 3000 वर्ष से भी अधिक पुराना हो सकता है, इसी गाँव में स्थित है "चाँद बावडी"। आभानेरी गाँव का शुरूआती नाम "आभा नगरी" था (जिसका मतलब होता है चमकदार नगर), लेकिन कालान्तर में इसका नाम परिवर्तित कर आभानेरी कर दिया गया।
चांद बावड़ी
9वीं शताब्दी में निर्मित इस बावडी का निर्माण राजा मिहिर भोज (जिन्हें कि चाँद नाम से भी जाना जाता था) ने करवाया था, और उन्हीं के नाम पर इस बावडी का नाम चाँद बावडी पडा। दुनिया की सबसे गहरी यह बावडी चारों ओर से लगभग 35 मीटर चौडी है तथा इस बावडी में ऊपर से नीचे तक पक्की सीढियाँ बनी हुई हैं, जिससे पानी का स्तर चाहे कितना ही हो, आसानी से भरा जा सकता है। 13 मंजिला यह बावडी 70 फ़ीट से भी ज्यादा गहरी है, जिसमें भूलभुलैया के रूप में 1300 सीढियाँ हैं। इसके ठीक सामने प्रसिद्ध हर्षद माता का मंदिर है। बावडी निर्माण से सम्बंधित कुछ किवदंतियाँ भी प्रचलित हैं जैसे कि इस बावडी का निर्माण भूत-प्रेतों द्वारा किया गया और इसे इतना गहरा इसलिए बनाया गया कि इसमें यदि कोई वस्तु गिर भी जाये, तो उसे वापस पाना असम्भव है।
चाँदनी रात में एकदम दूधिया सफ़ेद रंग की तरह दिखाई देने वाली यह बावडी अँधेरे-उजाले की बावडी नाम से भी प्रसिद्ध है। तीन मंजिला इस बावडी में नृत्य कक्ष व गुप्त सुरंग बनी हुई है, साथ ही इसके ऊपरी भाग में बना हुआ परवर्ती कालीन मंडप इस बावडी के काफ़ी समय तक उपयोग में लिए जाने के प्रमाण देता है। इसकी तह तक जाने के लिए 13 सोपान तथा लगभग 1300 सीढियाँ बनाई गई हैं, जो कि कला का अप्रतिम उदाहरण पेश करती हैं। स्तम्भयुक्त बरामदों से घिरी हुई यह बावडी चारों ओर से वर्गाकार है। इसकी सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों पर महिसासुर मर्दिनी एवं गणेश जी की सुंदर मूर्तियाँ भी इसे खास बनाती हैं। बावडी की सुरंग के बारे में भी ऐसा सुनने में आता है कि इसका उपयोग युद्ध या अन्य आपातकालीन परिस्थितियों के समय राजा या सैनिकों द्वारा किया जाता था। लगभग पाँच-छह वर्ष पूर्व हुई बावडी की खुदाई एवं जीर्णोद्धार में भी एक शिलालेख मिला है जिसमें कि राजा चाँद का उल्लेख मिलता है। चाँद बावडी एवं हर्षद माता मंदिर दोनों की ही खास बात यह है कि इनके निर्माण में प्रयुक्त पत्थरों पर शानदार नक्काशी की गई है, साथ ही इनकी दीवारों पर हिंदू धर्म के सभी 33 कोटी देवी-देवताओं के चित्र भी उकेरे गये हैं। बावडी की सीढियों को आकर्षक एवं कलात्मक तरीके से बनाया गया है और यही इसकी खासियत भी है कि बावडी में नीचे उतरने वाला व्यक्ति वापस उसी सीढी से ऊपर नहीं चढ सकता। आभानेरी गुप्त युग के बाद तथा आरम्भिक मध्यकाल के स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है जिसके भग्नावशेष विदेशी आक्रमण के हमले में खण्डित होकर इधर-उधर फ़ैले हुए हैं।
हर्षद माता मंदिर
जैसा कि नाम से ही विदित है कि हर्षद यानी हर्ष से, खुशी से, उल्लास से यानी की हर्ष एवं उल्लास की देवी को ही हर्षद माता नाम दिया गया। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि जो भी सच्चे मन से माता से अर्ज करता है, उसकी मन्नत पूरी होती है एवं उसे खुशी मिलती है। इस मंदिर का निर्माण भी राजा चाँद ने ही करवाया था। दोहरी जगती पर स्थित यह पूर्वाभिमुख मंदिर महामेरू शैली में बना हुआ है (वर्तमान में मंदिर अपनी वास्तविक स्थिति में नहीं है)। इसका मण्डप एवं गर्भगृह दोनों ही गुम्बदाकार छतयुक्त हैं। इसकी दीवारों पर देवी-देवताओं व ब्राह्मणों की प्रतिमाएँ बनाई हुई हैं (जो कि अब क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं)। यहाँ शिव पंचायत, हनुमान मंदिर एवं अन्य बहुत से मंदिर भी बने हुए हैं जो कि कला की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं। मंदिर के गर्भग्रह में कहीं भी सीमेंट एवं चूने का प्रयोग नहीं किया गया है, जो कि भारतीय शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण प्रदर्शित करता है।
मंदिर के ठीक सामने बावडी होने का मतलब साफ़ है कि जो भी व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करे, वह पहले अपने हाथ-मुँह धोए, उसके बाद मंदिर में प्रवेश करे। और यही हमारे देश की संस्कृति भी है कि जो भी व्यक्ति किसी धार्मिक स्थल में प्रवेश कर रहा है, उसका तन-मन शुद्ध होना चाहिए। कभी मंदिर में छह फ़ुट की नीलम पत्थर से बनी हुई हर्षद माता की मूर्ति हुआ करती थी जो कि सन् 1968 में चोरी हो गई थी। स्थानीय निवासियों से बात करने पर ऐसा भी पता चलता है कि माता गाँव पर आने वाले संकट के बारे में पहले ही चेतावनी दे दिया करती थी जिससे स्थानीय निवासी सतर्क हो जाते थे एवं परेशानियों का बखूबी सामना कर लिया करते थे। ऐसा भी सुनने में आता है कि 1021-26 के दौरान मोहम्मद गजनवी ने मंदिर एवं इसके परिसर में तोड-फ़ोड की तथा मूर्तियों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया था। वे खण्डित मूर्तियाँ आज भी मंदिर एवं बावडी परिसर में सुरक्षित रखी हुई हैं। बाद में 18वीं सदी में जयपुर महाराजा ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।
वर्तमान में चाँद बावडी एवं हर्षद माता मंदिर दोनों ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन हैं जिन्हें विभाग द्वारा चारों ओर से लोहे की मेड बनाकर संरक्षित किया गया है। साथ ही बावडी व मंदिर से सम्बंधित ऐतिहासिक जानकारियों के लिए बोर्ड भी लगाये गये हैं। सबसे अहम बात यह भी है कि यहाँ के निवासी भी पुरा सम्पदा का महत्त्व जानते हैं एवं हर्षद माता की वर्तमान मूर्ति (जिसे की पत्थर एवं सीमेंट से बनाया गया है), यहाँ के निवासियों ने ही प्रतिष्ठित करवाई थी।
जय जय राजस्थान
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Monday 25 May 2020

Interesting Facts of India !!



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Jantar Mantar (Royal Observatory) - New Delhi ! दिल्ली का जंतर मंतर = भारतीय पुरातन खगोलशास्त्र के अध्यन केंद्र||











|| रहस्यमयी है दिल्ली का जंतर मंतर || 
|| जंतर मंतर - भारतीय पुरातन खगोलशास्त्र के अध्यन केंद्र || 
|| पत्थरो और सूर्य की किरणों से समय और ग्रहो की चाल और परिवर्तन का करते थे पता || 

दिल्ली का जंतर मंतर 1724 में जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वारा निर्मित एक वेधशाला है। जंतर मंतर का आवश्यक उद्देश्य खगोलीय तालिकाओं को संचित करना था, जो सूर्य, चंद्रमा और अन्य ग्रहों जैसे खगोलीय पिंडों के समय और गति का अनुमान लगाने में मदद करता है। ।

जंतर मंतर नई दिल्ली के आधुनिक शहर में स्थित है। इसमें 13 वास्तु खगोल विज्ञान उपकरण शामिल हैं। यह स्थल जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वितीय द्वारा निर्मित पांच में से एक है, जो कैलेंडर और खगोलीय तालिकाओं को संशोधित करता है।

जंतर मंतर की संरचना प्राचीन दिनों में समय बताने के लिए सूर्य की स्थिति और छाया की दिशा का उपयोग करती है। अंतरिक्ष में अन्य खगोलीय पिंडों की गति और स्थिति की भविष्यवाणी करने के लिए इसे कुशलता से डिजाइन किया गया है | 

पूरे भारत में कुल 5 जंतर मंतर हैं, जैसे, दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी। 5 वेधशालाओं में से, मथुरा में वेधशाला को छोड़कर सभी अभी भी मौजूद हैं और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं। मथुरा वेधशाला और वह किला जिसमें किला था, 1857 से पहले ही नष्ट कर दिया गया था।

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Sunday 24 May 2020

Kid Dressed as Lord Shiva in Amer Mata Fair During Navratra in Jaipur !!


|| जय भोले नाथ ||
|| आमेर जयपुर ||
नवरात्रा के दौरान - आमेर माता के मेले में भगवान शिव के बाल रूप के दर्शन हुए आप बताये कैसे लग रहे है नन्हे शिव ?

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