ब्रुपका या द्रुप्का - लदाख की एक रहस्यमय जाती
भारत शुरू से ही एक रहस्यमयी देश रहा है और उसका कारण है यहाँ के लोग और उनका सामाजिक रहन सहन ! ऐसा ही एक समुदाय है ब्रोपका या द्रुप्का समुदाय जो सिकंदर की सेना के प्रत्यक्ष वंशज होने का दावा करता है | इनकी आबादी 2000 के आस पास और है और अब घटती जा रही है | यह लोग बुद्धा को मानते है और इनके "ल्हा" नामक एक लोक देवता भी है जिनको यह साल में एक बार पशुबलि देते है |
कारगिल के उत्तर-पूर्व में कुछ 130 किलोमीटर दूर, नियंत्रण रेखा पर, दाह, हानो गोमा, हनो योगमा, दारचिक और गारकॉन गाँव हैं। ये गांव बाल्टिस्तान की सड़क पर सिंधु के उत्तरी किनारे पर स्थित हैं। यहाँ एक ऐसा समुदाय पाया जाता है जो हजारों वर्षों से अपने दुर्गम गाँवों में अलगाव में रहता है। उनकी अलग-अलग विशेषताएं हैं - लम्बे और राजसी, हरी आँखें, उठा हुआ चेहरा, कोमल त्वचा के साथ गोरा रंग और कुछ सुनहरे बालों के साथ पैदा होते है । वे खुद को आर्यों का शुद्ध रक्त मानते हैं। यह अपने 4 गांव के अलावा किसी और जगह शादी नहीं करते |
एक ब्रुपका आदिवासी की पहचान उसके रंगीन टोपी से होती है जिसे टेपी कहा जाता है जिसमें विभिन्न रंग-बिरंगे फूल होते हैं, जो रंगीन बेरी के फूलों से सुशोभित होते हैं। टेपी भी एक उपकरण है जो बुरी नजर को हटाता है। महिलाओं ने भारी धातु, सोने और चांदी के आभूषणों के साथ-साथ पूरी लंबाई की भेड़ की खाल और भेड़ की ऊन के कपड़े पहनते हैं। पुराने धातु के सिक्के पहनावे का हिस्सा हैं। पुरुष ज्यादातर कमरबंध के साथ मैरून गाउन पहनते हैं। ऐसी मान्यता है कि शरीर पर पहना जाने वाला धातु बीमारी से बचाता है |
यह समाज अपने खुले रीती रिवाज़ो के लिए भी प्रसिद्ध है जिसमे प्रमुख है शादी से पहले सम्बन्ध बनाना, अपनी पसंद से जीवन साथी चुनने का अधिकार , पुरुष और महिला दोनों एक से ज्यादा जीवनसाथी एक साथ रख सकते है ! यह अपने सामाजिक नियमो की बड़ी कड़ाई से पालना करते है और समाज के बहार के लोगो से किसी तरह का सम्बन्ध रखने में विश्वास नहीं रखते |
PC : श्री अमन चोटानी जी
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